Friday, September 17, 2010

MEHNAT

MEHANT KAR MEHANT SE JI NA CHURANA,
PADAI TERI MANJIL HAI TU IS SE NA GHABRANA.

MEHANT NA KAREGA TO TU THOKARE  KAYAGA,
MEHANT KAR KE DEK LE JIVAN TERA BADAL JAYAGA,

NAVJIVAN KI KIRANE PHUT PADEGI TERE ANGAN ME
TERA ANGAN KUSHIYO SE LAHALAYAGA ,
EK ACHA NAGRIK BAN KE TU DES KA GAURAV BADAYGA

JAGO AE DES KE NAVYUVAKO TUME KUCH KAR GUJARANA HA,
LOGO KE KOHE HUE ARMANO KO  PHIR SE LOTANA HA.

KAVITA

मुमकिन है
कि मेरे लिए उम्र भर
तुम एक आवाज ही रहो
हम हवाओं से होकर गुजरती
असंख्‍य मकानों, जंगलों, पहाड़ों
और सूने दरख्‍तों को लांघकर हम तक पहुंचती
तरंगों से ही
भेजें अपने संदेश
अपने जी का हाल कहें
एसएमएस में बांधकर थोड़ी सी हंसी
और आंसू की दो बूंदें
कुछ पुरानी यादें, बिछड़े यार
कुछ साझे अधूरे स्‍वप्‍न
जो साझे इसीलिए थे
क्‍योंकि अधूरे थे
प्रेम के कुछ अधपके किस्‍से
जो जब तक समझ में आते
हाथों से फिसल चुके थे
हम यूं ही आवाज से थामें एक-दूसरे की हथेली
आवाज के कंधे पर ही टिकाएं अपना सिर
जब उदासी आसमान से भी भारी हो जाए
आवाज वीरान रातों में
रौशनी बनकर उतरे
जब हर ओर सब चुप हो
आवाज मेरी हर शिरा में बजने लगे
सुबह कहे - 'नालायक, आलसी अब तो उठ जा'
और रात में - 'मेरी नन्‍ही परी, अब सो जा'
आवाज ही सहलाए, दुलराए
गोदी में उठा ले
मुमकिन है कि हम
सिर्फ आवाज के तिनकों को बटोरकर
बनाएं एक घरौंदा
वो दुनिया का शायद पहला और आखिरी घरौंदा हो
जहां सिर्फ प्रेम की संतानें जन्‍म लें।
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मुमकिन है
कि बूढ़े होने तक यूं ही
हम एक-दूसरे को
सिर्फ आवाज से पहचानें
आवाज की खनक और उदासी से
सचमुच
कभी न जान पाएं कि
कैसे दिखते थे हम
जिस खनक पर तुम रीझे
इतनी शिद्दत से संजोया जिसे
मुमकिन है उसे
कभी छूकर न देख पाओ
जिस हंसी को याद किया बार-बार
दुख और उदासी के अंधेरे दिनों में
मुमकिन है कभी न जान पाओ
कि कैसी दिखती थीं वो आंखें
जब हंसी उतरती थी उनके भीतर
फिर भी हमारे बूढ़े होने तक वो खनक
वो हंसी
ऐसे ही सहेजो अपने भीतर
उन आंखो में उदासी की हल्‍की सी छाया भी
उदास कर दे तुम्‍हें
देखो तो जरा
कैसी विचित्र कथा है ये
इसी युग में, हमारी ही आंखों के सामने
हमारी ही जिंदगियों में घटती
सोचा था कि कभी
कि सिर्फ आवाज का एक घर बनाओगे
घर जो हवाओं में तैरेगा
मोबाइल कंपनियों के टॉवरों से निकलती तरंगों पर झूलेगा
पर देखो न
कितना अजीब है ये जीवन
जाना ही नहीं कि कब
बेदरो दीवार का एक घर
बना डाला
घर में आवाज की इतनी असंख्‍य खिड़कियां
इतने अनंत दरवाजे
कि जिनसे होकर
जिंदगी भर
रौशनी और हवाएं
आती-जाती रहेंगी
इस घर में कभी जी नहीं घुटेगा
देखना तुम
बूढ़े होने तक

Saturday, September 4, 2010

The lantern



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Krishna Janmasthami !

Krishna Janmasthami means a lot to us.We have no food on this auspicious day.We chant from early in the morning till at 12 O' clock in the night.As per our religion Lord krishna took birth on this day at 12 o clock in night.That day it was raining like cat and dog.There were not any source of  light except Lantern at that time.